आखिरी तीन सालों में, चीन के साथ हुई तनावपूर्ण झड़प के बाद भारतीय वायुसेना ने लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक बड़ी स्थानिक सुरक्षा तैनाती में वृद्धि की है। रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, भारतीय सेना ने तीन साल पहले गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीनी विमानों के बड़े पैमाने पर तैनात होने का निर्णय लिया था।
इस निर्णय के अनुसार, भारतीय वायुसेना ने एक विशेष अभियान के तहत कुल 68,000 से अधिक सैनिक, 90 से अधिक टैंक, पैदल सेना के करीब 330 बीएमपी लड़ाकू वाहन, राडार प्रणाली, तोपें और कई अन्य हथियारों को तीव्रगति से पूर्वी लद्दाख में पहुंचाया था। इस अभियान में, भारतीय वायुसेना ने अपनी ‘एयरलिफ्ट’ क्षमता का प्रदर्शन करते हुए कुल 9,000 टन की ढुलाई की गई, जिससे उसकी तैनाती क्षमता को प्रमोट किया गया।
इस अभियान के दौरान, भारतीय वायुसेना ने अपने विमानों के माध्यम से विभिन्न डिवीजनों को ‘एयरलिफ्ट’ किया और सुरक्षा के मामले में बड़े पैमाने पर सुधार किए। गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद, भारतीय वायुसेना ने राफेल और मिग-29 विमानों के साथ लड़ाकू विमानों को तैनात किया, और विभिन्न हेलीकॉप्टरों को भी सुरक्षा के कार्यों में शामिल किया।
इस अभियान के तहत, भारतीय वायुसेना ने वायुमंडल में अग्रिम ठिकानों पर हथियारों की तैनाती की, जो सुरक्षा की दिशा में बड़े सुधार का प्रमाण था। इसके साथ ही, वायुसेना ने रिमोट संचालित विमानों को भी तैनात किया, जो चीन की गतिविधियों की निगरानी करने में मदद करते हैं।
इस परियोजना के माध्यम से, भारतीय सेना ने अपनी सुरक्षा क्षमताओं को और भी मजबूती दी और दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में अपनी तैनाती को बढ़ावा दिया। इससे चीन के साथ सीमा पर भारत की सुरक्षा में बड़ी मात्रा में वृद्धि हुई है और यह भारतीय प्रशासनिक नीतियों की महत्वपूर्ण पहल का परिणाम है।