विवाहेत्तर पति का अवैध संबंध नहीं है पत्नी के प्रति क्रूरता – सुप्रीम को

पत्नी के प्रति क्रूरता नहीं है पति का अवैध संबंध होना – सुप्रीम कोर्ट

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अगर किसी  लड़के का विवाह के बाद भी उसके किसी महिला से अवैध संबंध है तो इसे पत्नी के प्रति पति की कोई  क्रूरता नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात एक ऐसे ही मामले में एक पति को बरी करते समय कही । इस मामले में पत्नी ने पति के विवाह के बाद के  संबंधों के कारण आत्महत्या कर ली थी।

पति की बेबफाई भी नहीं  आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार

कोर्ट ने यह कहा कि विवाहेतर संबंधों को अवैध या अनैतिक तो माना जा सकता है। लेकिन  पत्नी के प्रति क्रूरता मानकर पति को तो दोषी नहीं ठहराया जा सकता।  क्योंकि इसे कोई भी आपराधिक मामला करार देने के लिए बहुत कुछ और परिस्थितियां भी जरूरी होती हैं। न्यायाधीश  दीपक मिश्रा और अमित्व रॉय की बेंच ने कहा कि सिर्फ पति की ही  बेबफाई को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए  आधार नहीं माना जा सकता। दरअसल, इस केस में दीपा नाम की महिला ने अपने पति के विवाहेतर संबंधों से परेशान होकर ही  आत्महत्या कर ली थी। दोनों की शादी हुए  सात साल हो गए थे। दीपा के बाद उसके भाई  मां ने भी आत्महत्या कर ली थी ।

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सुप्रीम कोर्ट का तर्क

कोर्ट ने यह कहा कि मानसिक क्रूरता इन बातों पर निर्भर करती है कि शादी शुदा व्यक्ति किस परिवेश या परिस्थितियों का सामना कर रहा है। कोनसी परिस्थितियों से गुजर रहा है। पीठ ने कहा कि विवाह पश्चात  संबंध आईपीसी के सेक्शन 498-ए(पत्नी के प्रति कू्रता) के दायरे में बिल्कुल नहीं आता है। हालांकि कोर्ट नेयह  कहा कि इससे इनकार भी  नहीं किया जा सकता कि क्रूरता सिर्फ शारीरिक नहीं होती,लेकिन  मानसिक टॉर्चर व असामान्य व्यवहार के रूप में भी हो सकती है। यह केस उन  तथ्यों पर निर्भर करेगा। कोर्ट ने कहा कि महिला आत्महत्या की जगह तलाक या अन्य किसी प्रकार का फैसला ले सकती थी।

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तलाक के लिए  आधार बन सकता है
कोर्ट के अनुसार   अगर कोई पति विवाहेतर किसी अन्य से संबंध बनाता है तो यह किसी भी तरह से  अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जाएगा। हालांकि इसे पत्नी तलाक का आधार बना सकती  है। पीठ ने इन मामलों में निचली अदालत से सजा पाए उस  व्यक्ति की अर्जी पर विचार कर रही है। पत्नी पर मानसिक प्रताड़ना और उसे आत्महत्या के लिए बाध्य करने के आरोप में उस  शख्स को कर्नाटक हाई कोर्ट ने सजा सुनाई  थी। शीर्ष अदालत ने सभी आरोपों से मुक्त कर बरी करते हुए उसकी शेष सजा भी निरस्त कर दी।

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